Today we are publishing third one and last variant of the story for understanding the reality.
Means some body else will be using your brain with remote control. How Authority Bias is working on our day to day Marketing activity in Mutual Fund. Publishing this story with credit to Mr. Vijay Kumar Shukla with some modification for making it presentable over this platform.
एक नए लोमड़ का अंगूरी उपदेश
April 2, 2013, 5:00 PM IST विजय कुमार शुक्ला in बेवकूफियां | साहित्य
एक जंगल में एक लोमड था। ।एक बार एक अंगूर के बगीचे में पहुंचा।।हरा हरा अंगूर देख खर जीभ लैप लापा आयी। ((सब जानते हैं लोमड को अंगूर बहुत प्रिय होता है) और टूट पडा अंगूरों पर। तभी बाग़ का मालिक आ गया और उसकी पिटाई करनी शुरू कर दी। वह दया की भीख माँगने लगा, तो मालिक ने उसे छोड़ तो दिया किन्तु उसकी पूँछ काट दी ताकि वो कभी भी अंगूर के बाग़ की और आने से डरे . किन्तु अंगूर और हरा रंग उसके दिल दिमाग में बैठ गया। पूँछ कटा लोमड रेगिस्तान में अपने जैसे अन्य लोमड़ लोगों के बीच पहुंचा। सबने मजाक उड़ना शुरू किया। किन्तु लोमड चतुर था। उसने पहले ही योजना बना रखी थी। व्यंग्य से हंसते हुए कहा कि ” मूर्खों यह पूँछ कटाकर मैं एक अव्वल दर्जे का लोमड बन गया हूँ . यह पूँछ मैंने स्वयं इस बीहड़ के राजा को काट कर समर्पित की है। पता है बदले मं मुझे क्या मिलेगा? फुल टाइम मजा , अंगूर के रस की नदियों का । और अब मेरा उस राजा से डाइरेक्ट कनेक्शन है। मैं किसी को भी उसके पास मजा लेने के लिए भिजवा सकता हूँ। लेकिन बहुत सारी शर्ते हैं। सबसे पहले पूँछ कटानी पड़ेगी। और बहुत सी बाते हैं, जैसे जैसे मुझे याद आयेगा मैं बताता जाउंगा। ठीक है? तो किस किस को मेरा साथ चाहिए?” अब शुरुआत में कई लोमड साथ आये, लेकिन एक काले लोमड को उसने अपना खास बना दिया, जो हमेशा बाकी लोमडों को चिल्ला चिल्ला कर याद दिलाने लगा कि क्या करना है।
धीरे धीरे उस पूँछ कटे गिरोह का आतंक बढ़ने लगा। ज्यादातर लोमड लालच में अपनी पूँछ कटवा ली। हरे रंग के अंगूर की याद में सब हरा हरा देखने लगे। कभी कभी लोग अंगूर के बारे में चर्चा करते तो उसी में खो जाते।
अगल बगल के हरे भरे जंगल में भी इन लोमडों का आतंक फैलने लगा, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद 90% लोगों ने अपनी पूँछ नहीं कटवाई , हाँ जिन्हीने कटवाई थी, असल में उनके पूर्वज या तो कमज़ोर थे, धीर -धीरे डी एन ए में बदलाव आने लगा। तो पूँछ कटे लोमड चूँकि कम संख्या में थे तो भाईचारे का उपदेश देने लगे, और जहां उनकी तादाद ज्यादा थी वहाँ ज़बरदस्ती से लोगों की पूँछ कटवाने लगे।
इस लोमड़ गिरोह के कुछ अनुयाइयों ने अलग अलग प्रकार से प्रयत्न कर लिया और छद्म भेष बना कर यह जताने की कोशिश की “ लोगों को बेवजह नफ़रत करते हुए और अपना जीवन व्यर्थ करते हुए देखता हूं तो दुख होता है।“ किन्तु दाल नहीं गली। तो गिरोह की मानसिकता और उस गिरोह में शामिल होते वक़्त ली गयी शपथ याद आ गयी कि ” अगर फुल टाइम मजा चाहिए , अंगूर के रस की नदियों का, तो हे बिना पूँछ वालों, हमारे गिरोह में नए नए मेम्बर बनाओ। किसी भी तरह से।” जैसे एक कोई नयी कंपनी मार्किट में लांच होती है, तो अपने नए एजेंटों को भांति भांति के प्रलोभन देती है, टारगेट पूरा करने के लिए। दंड भी देती है / इस नए गिरोह ने दंड में ऐसी भयावह तस्वीर पेश की कि उनके एजेंट लोमड़ बुरी तरह से डर गए और जी जान से अपना टारगेट पूरा करने में लग गए। जो प्रलोभन था, वो तो अपनी जगह था ही। कुछ एक एजेंट को लगा कि यार गड़बड़ हो गयी, फंस गए यहाँ आके। तो बाकी लोमड उन्हें डराने लगे।
खैर, कुछ लोमड अपने आपको चिकित्सक बताते थे और कहते थे ” लोगों को बेवजह नफ़रत करते हुए और अपना जीवन व्यर्थ करते हुए देखता हूं तो दुख होता है।” किन्तु बहुत दिनों तक अपने अन्दर के लोमड पण को दबा ना सके और रह रह कर पूंछ ना होने के फायदे गिनाने लगे। (आखिर खुद की पूँछ जो कट गयी थी।) तो एक बार हूंक दिए कि “एक प्राचीन प्रेत का देशी उपदेश।।।।।”
और पूँछ वालों को काला , प्रेत , ना जाने क्या क्या उपमाए दे डाली ।
आखिर टारगेट पूरा जो करना था।
किन्तु लोमड कितना भी चिल्लाएं, मन ही मन जब अंगूर से लदे वृक्ष देखते हैं , तो कहते हैं, अंगूर खट्टे हैं। असली अंगूर तो बाद में मिलेगा और एक दूसरे को भरोसा दिलाते रहते है, कन्फर्म करते रहते हैं, रोज़ रोज़। मिलेगा रे मिलेगा, सबको अंगूर मिलेगा। (ज्यादातर लोमड छुप छुप कर अंगूर खा भी लेते हैं,,,,ज्यादातर और कहानियां फैलाना शुरू कर दिया)। आज के बाजार की स्थिति और एसआईपी मार्केटिंग वास्तव में ऊपर कहानी में वर्णित परिदृश्य से मिलता है।
मैं नहीं जानता कि इस कहानी का “द म्यूचुअल फंड एसआईपी मार्केटिंग” से कोई संबंध है या नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि बस इस कहानी में लोमड अंगूर के लालच में अपनी पूंछ काटने की तरह, हमारे आईएफए समुदाय घूंट के माध्यम से AUM इमारत के आकर्षण में अपने अंगूठे (एक पोर्टफोलियो के सक्रिय प्रबंधन करने की क्षमता) को काट दिया है ।
The preaching of a new fox
April 2, 2013, 5:00 PM IST Vijay Kumar Shukla in Idiots | Literature
There was a fox in a forest. Once reached a vineyard. Seeing the green grapes, the mouth went watering. ((Everyone knows the fox loves grapes very much) and breaks down on the grapes. Then the owner of the garden came and started beating him. He started begging for mercy, then the owner left him but his tail Chopped so that he will always afraid of coming to the vineyard. But the grape and green color was sat in his heart. The tail-cut fox arrived in the desert among other foxes like himself. Everyone made fun of him. Rued. But the fox was clever. He had already made plans. Laughing sarcastically, “I have become a top-notch fox by cutting this tail, fools. I surrendered this tail myself to this rugged king.” Do you know what I will get in return? Full time fun, rivers of grape juice. And now I have a direct connection to that king. I can send anyone to have fun with him. But there are so many conditions. First the tail has to be cut. And there are many things, as I can remember, I will tell. Okay? So, who needs me? ” Now, in the beginning, many came together, but he made a black fox a special one, who always shouted to the rest of the foxes and reminded them of what to do.
Gradually, the terror of the tail-cut gang began to escalate. Most foxes got lured and got their tail cut. Everyone started seeing green in memory of green grapes. Sometimes foxes would be lost when they talked about grapes. And his beloved foxes would remember all their things in such a way that the coming generations should know him.
The terror of these foxes began to spread in the lush green forest next door, but despite a lot of efforts, 90% of the people did not get their tail cut, yes who did get the cut, in fact their ancestors were weak. Gradually, the DNA began to change. So the tail foxes were cut in small numbers, so they began to preach brotherhood, and where their number was more there, they were forced to have their tail cut.
Some followers of this fox gang tried differently and tried to make a pseudo-disguise and tried to assert that “It hurts when I see people hating needlessly and wasting their lives.” But no result. So the mentality of the gang and the oath taken while joining that gang remembered that “If you want full time fun, rivers of grape juice, then make new members in our gang, without tail. Either way. ”As a new company launches in the market, it lures its new agents in a different way, to meet the target.Also gives penalty/punishment. The new gang presented a frightening picture in the penalty that their agent Fox was badly scared and was in a life-fulfilling target. The temptation was in its place. Some of the agents felt that they are messed up and got stuck here. So the rest of the fox started scaring them.
Well, some foxes used to call themselves doctors and used to say, “It hurts when I see people hating needlessly and wasting their lives.” But for a long time, foxes can not suppress their inner body and by staying still Started counting the advantages of not having a tail. (After all, the tail itself was cut.) So He once said, “The sermon of an ancient phantom……”
And gave the title black phantom to the foxes with a tail, no idea how many other titles they gave.
After all the target was to be done.
But no matter how much the fox shouts, in his mind when he sees a tree laden with grapes, he says, the grapes are sour. The real grapes will be found later and they assure each other, they keep on confirming everyday. You will get ray, everyone will get grapes. (Most foxes also eat grapes in hiding, ,,, mostly and started spreding stories). Today’s market condition and SIP Marketing is exactly matching scenario discribed in above story.
I dont know whether This story has any connection with “The Mutual Fund SIP Marketing“ or not. But what I feel that just like in this story fox cutting their own tails in the lure of grapes, our IFA community have cut their own thumb (Ability of doing active management of a portfolio) (In Eklavya Style) in the lure of AUM building through SIP.
In our next blog we are reposting our old post on demand which was deleted due to some technical reason. “The biggest risk in the market is …”
WHAT IS STOPPING IFA FROM BECOMING A LIMITLESS ADVISORS?
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